25 May 2012

डा० नामवर सिंह ने कविता में लय का होना अनिवार्य माना


सभी को यह जानकर खुशी होगी कि हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक डा० नामवर सिंह ने कविता में लय का होना अनिवार्य माना है------

२४ मई २०१२ को दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में " लिखावट " संस्था की ओर से कविता पाठ का कार्यक्रम रखा गया था। कविता पाठ करने वालों में विनोद कुमार सिन्हा, तजेन्द्र सिंह लूथरा, उमेश चौहान, लीलाधर मंडलोई और मिथिलेश श्रीवास्तव प्रमुख थे। लीलाधर मंडलोई और उमेश चौहान की कविताओं ने श्रोताओं को बाँधे रखा। उमेश चौहान की अवधी कविता और उनकी आल्हा छन्द में लिखी कविता ने सभी को प्रभावित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध आलोचक डा० नामवर सिंह ने की।
इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में डा० नामवर सिंह ने कहा कि हिन्दी कविता में गद्य को भी कविता मानकर लिखा जा रहा है, इसे गद्य ही कहा जाना चाहिए, कविता नहीं..... कविता में लय का होना आवश्यक है, लय और छन्द कविता की उम्र को बढाते हैं अर्थात जिस कविता में लय और छन्द  होता है वह कविता अधिक समय तक पाठकों को याद रहती है..... उन्होंने कहा कि नई कविता में लय को तोड़ने की बात कभी नहीं कही गई है, कविता में लय अवश्य होनी चाहिये।
तीन घंटे तक चले कार्यक्रम में श्रोताओं से सभागार खचाखच भरा रहा।

-डा० जगदीश व्योम

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उमेश चौहान की टिप्पणी --

नामवर जी ने कार्यक्रम में यह कहकर कि लय ही कविता की आयु निर्धारित करती है, न केवल कवियों को एक अनुभवजन्य दृष्टिकोण दिया, बल्कि अपने पूर्ववर्ती विचारों का परिष्कार भी किया। उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि लय का मतलब तुक नहीं होता और सार्थक कविता को तुक के चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कविता में अनुप्रास हो सकता है किन्तु वह स्वाभाविक रूप से आना चाहिए, जबरन ठूँसा हुआ नहीं। कार्यक्रम की इतनी सार्थक रिपोर्ट के लिए व्योम जी को साधुवाद।
Umesh
6/3/12 को
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नामवर जी का यह कहना ठीक ही है कि लय ही कविता की आयु तय करती है। यह कहकर न केवल उन्होंने कवियों को एक अनुभव-जन्य दृष्टिकोण दिया है, बल्कि स्वयं अपने पूर्ववर्ती विचारों का परिष्कार किया है। आपकी रिपोर्ट के लिए धन्यवाद।

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2 comments:

Umesh said...

नामवर जी का यह कहना ठीक ही है कि लय ही कविता की आयु तय करती है। यह कहकर न केवल उन्होंने कवियों को एक अनुभव-जन्य दृष्टिकोण दिया है, बल्कि स्वयं अपने पूर्ववर्ती विचारों का परिष्कार किया है। आपकी रिपोर्ट के लिए धन्यवाद।

Umesh said...

नामवर जी ने कार्यक्रम में यह कहकर कि लय ही कविता की आयु निर्धारित करती है, न केवल कवियों को एक अनुभवजन्य दृष्टिकोण दिया, बल्कि अपने पूर्ववर्ती विचारों का परिष्कार भी किया। उन्होंने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि लय का मतलब तुक नहीं होता और सार्थक कविता को तुक के चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कविता में अनुप्रास हो सकता है किन्तु वह स्वाभाविक रूप से आना चाहिए, जबरन ठूँसा हुआ नहीं। कार्यक्रम की इतनी सार्थक रिपोर्ट के लिए व्योम जी को साधुवाद।