यह जीवन
एक वृत्त आरेख है
जहाँ वृत्त
एक-दूसरे को
छूते हैं
काटते हैं
कभी-कभी
बस किनारे से गुज़र जाते हैं
मैं
इन सब वृत्तों में हूँ
थोड़ी-थोड़ी
पर कहीं पूरी भी
हर वृत्त में
एक रूप, एक रंग
एक अनुभव
अधूरा नहीं
पूरा
अपनी सीमा में, अपने केंद्र में
हर वृत्त
एक भूमिका
एक संबंध
एक परिधि
और मैं
हर वृत्त की रेखा पर टिकी
बँटी हुई भी, पूरी भी।
एक वृत्त
बचपन की किलकारियों का
जिसमें हँसते हैं अब
मेरे दिल के टुकड़े
और मैं,
उनकी हँसी में
अपनी साँसें जोड़ देती हूँ।
एक वृत्त
दांपत्य का
जिसमें मैं एक साथ
पत्नी हूँ, साथी हूँ,
और कई बार
मौन हूँ।
एक वृत्त
मायके का है
जहाँ समय
ठहरा हुआ लगता है
और एक
ससुराल का
जो हर दिन
मुझे नया बनाता है।
एक वृत्त
अध्यात्म का है
मैं उसकी देहरी पर
वर्षों से खड़ी हूँ
न भीतर उतर सकी
न बाहर लौटी
मैं बस प्रतीक्षा में हूँ
कृपा की।
एक वृत्त
दफ़्तर का है
ज़िम्मेदारियों का
सीमाओं का
मैं एक नाम, एक पद,
और फिर भी
एक स्त्री हूँ
जिसके भीतर
शब्द पलते हैं।
एक वृत्त साहित्य का भी है
जिसमें मैं शायद
औपचारिक रूप से नहीं हूँ,
पर जब मन की बात
कागज़ पर उकेरती हूँ,
तो वह वृत्त
मुझे स्वीकार कर लेता है।
एक वृत्त
समाज का है
जहाँ चाह कर भी
नहीं कह पाती ' न '
क्योंकि वहाँ
अब भी रिश्तों की धूप है
और मैं
उसमें भीगना जानती हूँ।
एक वृत्त
पुराने शहरों का
जिनकी गलियों से
अब भी आती है आवाज़
“तू यहीं है कहीं”
और
जब इन सब वृत्तों से
थोड़ी सी बचती हूँ
तो चली जाती हूँ
उस वृत्त में
जो सबसे भीतर है
सबसे शांत
सबसे गूढ़
जहाँ मैं
अपने आप में समाई हूँ।
मन का वह एकमात्र वृत्त-
अछूता, अडोल, अकेला
जिसमें कोई और वृत्त
प्रवेश नहीं करता
और न ही काट सकता है मुझे।
ये सारे वृत्त, देह के हैं
भूमिकाओं, संबंधों और समय के
मन का वृत्त बस एक है
और उसमें, मैं पूर्ण हूँ।
-भावना सक्सैना
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