28 August 2011

हमने जो भोगा सो गाया

-बलवीर सिंह रंग

हमने जो भोगा सो गाया ।

अकथनीयता को दी वाणी
वाणी को भाषा कल्याणी
कलम कमण्डल लिये हाथ में
दर-दर अलख जगाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

सहज भाव से किया खुलासा
आँखों देखा हुआ तमाशा
कौन करेगा लेखा-जोखा
क्या खोया, क्या पाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

पीड़ाओं के परिचायक हैं
और भला हम किस लायक हैं
अन्तर्मठ की प्राचीरों में
अनहद नाद गुँजाया
हमने जो भोगा सो गाया ।

2 comments:

डा० जगदीश व्योम said...

बहुत सुन्दर गीत

सुरेंद्र वर्मा said...

रंग जी को बहुत दिनो बाद पढा.मज़ा आगया.