16 April 2005

काव्य मंजरी

चंदन सी गंध

पलकों में तैर गईं
पीड़ा की जलपरियाँ।
चंदन सी गंध लिये
देह घिरी साँसों से
फिर फिर सकुचाया मन
कुछ पावन पापों से
एक एक कर टूटी
प्रतिरोधों की कड़ियाँ।
वर्जित फल सा कोई
आकर्षण धार धार
तड़पन सी पैठ गई
साँसों के आर पार
सपने‚ ज्यों रैन पड़े
दिखती हों फुलझड़ियाँ।
शबनम की बूँदों ने
शीतल सा प्यार किया
चन्दा ने किरनों को
धरती पर वार दिया
फूल उठी साँसों में
हार सिंगारी कलियाँ।
सागर में भाटा था
बीत गए संवत्सर
लौटये द्वारे से
उद्वेलन के अवसर
जाने क्यों ज्वार नये
सौंप गयीं दो घड़ियाँ।
बूँद बूँद आँसू थे
टूक टूक मुस्काने
कौन गया और कौन
आया‚ हम क्या जानें
बचकर निकलीं हमसे
मौसम की रंगरलियाँ।

***

-सरिता शर्मा

No comments: