छन्द
मस्त मँजीरा खनकाय रही मीरा
और रस की गगरियाँ रसखान ढरकावैं हैं
संग संग खेलैं खेल सूर ग्वाल बालन के
दुहि पय धेनु को पतूखी में पिवाबैं हैं
कूटि कूटि भरे लोकतत्व के सकोरा
गीत गाथन की ध्वनि जहाँ कान परि जावै है
ऍसी ब्रजभूमि एक बेर देखिवे के काज
देवता के देवता को मनु ललचावै है.
डा० जगदीश व्योम
5 comments:
उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन.
मरने न दो
परम्पराएँ कभी
बचोगे तभी
मिलने भी दो
राम और ईसा को
भिन्न हैं कहाँ.
छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध.
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा.
हाइकु मूलतः जापानी कविता है. केवल १७ अक्षर में पूरी कविता हो जाती है.पहली पंक्ति में ५ अक्षर दूसरी में ७ अक्षर और तीसरी पंक्ति में ५ अक्षर होते हैं.
हाइकु वर्तमान की बहुचर्चित कविता है.
डा० जगदीश व्योम
Haiku
an excellent effort
k.p.mishra
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