04 August 2023

मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्कवि मैथिलीशरण गुप्त एक बार दिल्ली से झाँसी जा रहे थे, मेल छूट गई और उन्हें परिवार सहित जनता गाड़ी से रेलयात्रा करनी पड़ी... उन्होंने एक घनाक्षरी लिख डाली इस यात्रा पर... उनके हाथ से लिखी यह ऐतिहासिक कविता देख पढ़ सकते हैं। 
                     -डा० जगदीश व्योम



बंचित हो मेल से कुटुम्बयुत घंटो बैठ, 
 जनता से जाने की प्रतीक्षा करता रहा
भीड़ की न बात कहूँ यात्रियों का तांता बढ़-
 चढ़ निज काल कोठरी सा भरता रहा 
गेंद-बल्ले बन के बिछौने और ट्रंक चले, 
सम्मुख कपाल-क्रिया देख डरता रहा
झाँसी में न जाने किस भाँति जीता उतरा मैं, 
दिल्ली से चला तो मार्ग भर मरता रहा। 
       -मैथिलीशरण गुप्त




1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह,क्या बात है।महत्त्वपूर्ण घनाक्षरी।उनकी हस्तलिपि में आप खोज कर लाए ये और अधिक महत्त्वपूर्ण है।बधाई आपको।