04 August 2023

अपना भी दर्द निराला है

अपना भी दर्द निराला है-
कुछ घर का है, कुछ बाहर का
हम देश-देश घूमे, 
आँखों में लेकर
भार समंदर का

स्वप्नों में अर्द्धकंदराएँ
जागरण लिए खाली बाती
मन में आकाश रामगिरि का
तन की यात्रा सिंहलद्वीपी
हम बोलेंगे पाषाणों से
है यह अभिशाप जन्म भर का 
अपना भी दर्द निराला है...

मिल बैठे आम तले कर ली
शाकुन्तल क्षण की अगवानी
बाहों के घेरे से बढ़कर
होगी क्या और राजधानी
कस्तूरी मन मानता रहा
बन्धन बस ढाई आखर का
अपना भी दर्द निराला है...

हमने महकाये साँसों से
सूने खंडहर वे राजमहल
अंगारों में उगते गुलाब
पहरे के पीछे खिले कमल
हम धनुष तोड़ते फिरे सदा
लेकर हर भरम स्वयंवर का
अपना भी दर्द निराला है
कुछ घर का है, कुछ बाहर का

  -सोम ठाकुर

1 comment:

मंजुल भटनागर said...

बहुत ही सुन्दर सुमधुर अनूठा गीत .मंजुल भटनागर