रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगे, मिटेगा नहीं
मैं तो पतझर था फिर क्यों निमंत्रण दिया
ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुए
आस मन में लिए, प्यास तन में लिए
कब शरद आई पल्लू समेटे हुए
तुमने फेरी निगाहें, अँधेरा हुआ
ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं
रेत पर ........
मैं तो होली मना लूँगा सच मान लो
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा
तुम मुझे मेरे पंखों का आकाश दो
उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम
यूँ करोगी तो दिल चुप रहेगा नहीं
रेत पर ........
आँख खोलीं, तो तुम रुक्मणी-सी दिखीं
बंद की आँख तो राधिका तुम लगीं
जब भी देखा तुम्हें शान्त-एकान्त में
मीरबाई-सी एक साधिका तुम लगीं
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं
रेत पर ........
-विष्णु सक्सेना
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगे, मिटेगा नहीं
मैं तो पतझर था फिर क्यों निमंत्रण दिया
ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुए
आस मन में लिए, प्यास तन में लिए
कब शरद आई पल्लू समेटे हुए
तुमने फेरी निगाहें, अँधेरा हुआ
ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं
रेत पर ........
मैं तो होली मना लूँगा सच मान लो
तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो
मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा
तुम मुझे मेरे पंखों का आकाश दो
उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम
यूँ करोगी तो दिल चुप रहेगा नहीं
रेत पर ........
आँख खोलीं, तो तुम रुक्मणी-सी दिखीं
बंद की आँख तो राधिका तुम लगीं
जब भी देखा तुम्हें शान्त-एकान्त में
मीरबाई-सी एक साधिका तुम लगीं
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं
रेत पर ........
-विष्णु सक्सेना
4 comments:
बहुत सुन्दर
wah wah bahut sundar bhaaw
वाह वाह बहुत सुन्दर भाव
वाह वाह बहुत सुन्दर भाव
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