18 July 2018

क्यों मिले तुम

जो लिखा प्रारब्ध में
‘गर वो मिलेगा,
क्यों मिले तुम?

चल रहा जीवन निरंतर
निभ रहे दायित्व सारे
आँख की कोई उदासी
छुप रही होठों किनारे
ख़ुशबुओं की कब कमी थी
ज़िंदगी में
क्यों खिले तुम ।

एक पूरा आसमां जब
हो चुका तय बहुत पहले,
क्या छुपा था सार आख़िर
क्यों कथा के पात्र बदले,
मंज़िलें जब थीं नहीं फिर
साथ मेरे
क्यों चले तुम?

कुछ पलों का साथ था पर
युग–युगांतर की कथा थी,
बूंद–बूंदों कलश छलका
कई स्मृतियों की व्यथा थी,
स्वप्न यदि हैं सिर्फ़ मिथ्या
रात–दिन फिर
क्यों पले तुम

-मानोशी

3 comments:

deepa joshi said...

वाह बहुत ही सुंदर

deepa joshi said...

वाह बहुत ही सुंदर

Piyush said...

उत्तम