25 June 2017

दे बादल रे ! राहत दे

भूखों को रोटी दे
प्यासों को पानी दे
बादल रे ! राहत दे
यों न परेशानी दे !

आंखों को सपने दे
बिछुड़ों को अपने दे
अकुलाये लोगों को
और मत तड़पने दे
अर्थहीन जीवन को
थोड़े-से मानी दे !

उमस-भरी धरती को
ठंडक दे, छाया दे
तन ढक निर्वस्त्रों के
निर्धन को माया दे
बधिरों को श्रवण-शक्ति
गूंगों को बानी दे !

आंखों को इंद्रधनुष
अधरों को मेघ-राग
पंछी को नीड़ मिले
जन-जन के खुलें भाग
आजीवन याद रहे
एक वह निशानी दे !

यक्षिणियों की गाथा
सुना विकल यक्षों को
थोड़ा-सा उत्सव दे
घायल उपलक्षों को
ठहरे संदर्भों को
तू तनिक रवानी दे !

छंदों, रसबंधों से
कविता की बुझे प्यास
इतना-भर मांग रहा
नव युग का कालिदास
बांच लिया मेघदूत
अब नई कहानी दे !
या शाकुंतल पीड़ा
जानी-पहचानी दे !


-योगेन्द्र दत्त शर्मा

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