11 June 2016

प्रेम की पवित्र

प्रेम की पवित्र अभिनन्दनीय वादियों में,
जाने कौन सी बयार पत्तियों को छू गयी।
चाहत की चाँदनी सिहर गयी पोर-पोर,
आहत हुई तो ओस बनकर चू गयी।
भावना के रंग भेद-भाव के शिकार हुए,
अपनों से दूर अपनों की खुशबू गयी।
गाँव-गाँव गाते रहे भजन कबीरदास,
किन्तु किसी मन से न मैं गया न तू गयी।।

-डा० अशोक अज्ञानी

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