सहती रही सभी कुछ काया
मलिन हुआ परिवेश
सूख चला नदिया का पानी
आधा जीवन रेत
मलिन हुआ परिवेश
सूख चला नदिया का पानी
आधा जीवन रेत
उगे काँस मन के कूलों पर
उजड़ा रूप ललाम
हम जानें या राम ...
प्यार हमारा ज्यों इकतारा
गूँज-गूँज मर जाय
जैसे निपट बावरा जोगी
रो-रो चिता उड़ाय
गूँज-गूँज मर जाय
जैसे निपट बावरा जोगी
रो-रो चिता उड़ाय
बट-पीपल-घर-द्वार-सिवाने
सबको किया प्रणाम
हम जानें या राम ...
आँगन की तुलसी मुरझायी
क्षीण हुए सब पात
सायंकाल डोलता सिर पर
बूढ़ा नीम उदास
क्षीण हुए सब पात
सायंकाल डोलता सिर पर
बूढ़ा नीम उदास
हाय रे वो बाबुल का अँगना
बिना दिये की शाम
हम जानें या राम ...
सुन रे जल, सुन री ओ माटी
सुन रे ओ आकाश
सुन रे ओ प्राणों के दियना
सुन रे ओ वातास
सुन रे ओ प्राणों के दियना
सुन रे ओ वातास
दुःख की इस तीरथ-यात्रा में
पल न मिला विश्राम
ऐसे बीते दिवस हमारे
ऐसे बीते दिवस हमारे
हम जानें या राम
- प्रेम शर्मा
2 comments:
हम जानें या राम"
Nice
बहुत ही मर्मस्पर्शी गीत । मन में उतर गया सीधे।
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