14 March 2015

कैसे बीते दिवस हमारे

कैसे बीते दिवस हमारे 
सहती रही सभी कुछ काया
मलिन हुआ परिवेश
सूख चला नदिया का पानी
आधा जीवन रेत
उगे काँस मन के कूलों पर
उजड़ा रूप ललाम
हम जानें या राम ...

प्यार हमारा ज्यों इकतारा
गूँज-गूँज मर जाय
जैसे निपट बावरा जोगी
रो-रो चिता उड़ाय
बट-पीपल-घर-द्वार-सिवाने 
सबको किया प्रणाम
हम जानें या राम ...

आँगन की तुलसी मुरझायी
क्षीण हुए सब पात
सायंकाल डोलता सिर पर
बूढ़ा नीम उदास
हाय रे वो बाबुल का अँगना
 बिना दिये की शाम
हम जानें या राम ...

सुन रे जल, सुन री ओ माटी 
सुन रे ओ आकाश
सुन रे ओ प्राणों के दियना
सुन रे ओ वातास
दुःख की इस तीरथ-यात्रा में
पल न मिला विश्राम
ऐसे बीते दिवस हमारे
हम जानें या राम

- प्रेम शर्मा

2 comments:

Unknown said...

हम जानें या राम"

Nice

rammurti singh adheer said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी गीत‌ । मन में उतर गया सीधे।