-हरिराम पथिक
सत्य जीता, झूठ की लंका दहन
आ गई है हर दिशा सूरज पहन
देख यह वातावरण संकल्प कहता
पाप पल भर भी नहीं होगा सहन।
०००
दिखरहीं दुर्भावनाएँ हैं बड़ी
आ गई फिर से चुनौती की घड़ी
आओ ! थामें रोशनी का हाथ हम
सामने संभावनाएँ हैं खड़ी।
०००
पाँव आतुर लक्ष्य पाने के लिए
शब्द आतुर भाव पाने के लिए
आ गया उत्सव उजाले का "पथिक"
दीप आतुर जगमगाने के लिए
- हरिराम पथिक
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