ऐंगर बैठ लेओ कछु काने, काम जनम भर राने
सबखौं लागौ रातु जिअत भर, जा नईं कभऊँ बड़ाने
करियौ काम घरी भर रै के, बिगर कछू नइँ जाने
ई धंधे के बीच ईसुरी, करत-करत मर जाने
* * * *
जो तुम छैल छला बन जाते, परे अँगुरियन राते
मों पोंछत गालन के ऊपर, कजरा देत दिखाते
घरी घरी घूघट खोलत में, नजर सामने आते
ईसुर दूर दरस के लाने, ऐसे काए ललाते
* * * *
जबसें छुई रजऊ की बइयाँ, चैन परत है नइयाँ
सूरज जोत परत बेंदी पै, भर भर देत तरइयाँ
कग्गा सगुन भये मगरे पै, छैला सोऊ अबइयाँ
कहत ईसुरी सुनलो प्यारी, ज्यो पिंजरा की टुइयाँ
* * * *
नईयाँ रजऊ तुमारी सानी सब दुनिया हम छानी
सिंघल दीप छान लओ घर-घर, ना पदमिनी दिखानी
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन, खोज लई रजधानी
रूपवंत जो तिरियाँ जग में, ते भर सकतीं पानी
बड़ भागी हैं ओई ईसुरी तिनकी तुम ठकुरानी
* * * *
-ईसुरी
सबखौं लागौ रातु जिअत भर, जा नईं कभऊँ बड़ाने
करियौ काम घरी भर रै के, बिगर कछू नइँ जाने
ई धंधे के बीच ईसुरी, करत-करत मर जाने
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जो तुम छैल छला बन जाते, परे अँगुरियन राते
मों पोंछत गालन के ऊपर, कजरा देत दिखाते
घरी घरी घूघट खोलत में, नजर सामने आते
ईसुर दूर दरस के लाने, ऐसे काए ललाते
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जबसें छुई रजऊ की बइयाँ, चैन परत है नइयाँ
सूरज जोत परत बेंदी पै, भर भर देत तरइयाँ
कग्गा सगुन भये मगरे पै, छैला सोऊ अबइयाँ
कहत ईसुरी सुनलो प्यारी, ज्यो पिंजरा की टुइयाँ
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नईयाँ रजऊ तुमारी सानी सब दुनिया हम छानी
सिंघल दीप छान लओ घर-घर, ना पदमिनी दिखानी
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन, खोज लई रजधानी
रूपवंत जो तिरियाँ जग में, ते भर सकतीं पानी
बड़ भागी हैं ओई ईसुरी तिनकी तुम ठकुरानी
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-ईसुरी
2 comments:
nice post.
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Good poem
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