14 January 2013

तुम भारत को जगा गयी


लड़ी शेरनी जैसी थी तुम, जान की बाजी लगा गईं
भारत की सच्ची बेटी थीं, यह दुनिया को दिखा गईं
सन् बारह के जाते-जाते, हम सबको तुम रुला गईं
खुद तो तुम परलोक सिधारीं, पर भारत को जगा गईं ।।

वस्त्र तुम्हारे गये थे फाड़े, पर  लज्जित  भारत माँ थी,
चोंटे तन पर तुमने खाईं, पर घायल तो हर माँ थी
फौलादी सीने वाले भी, पिता की काँपी आत्मा थी
मेडिकल बुलटिन में अटकी, मानो  देश की हर जां थी
मृत्यु  तुम्हारी सारे देश में, बहस नई एक चला गई,
खुद तो तुम परलोक सिधारी, पर भारत को जगा गई ।।

पुत्री तुम्हारी कुर्बानी को, व्यर्थ न अब जाने देंगे,
नर-पिशाच थर-थर कापेंगे, चैन से ना सोने देंगे
ढुलमुल सत्ताधीशों को अब, और वक्त ना हम देंगे,
कड़े बनें  कानून, सजा फाँसी की हो ये देखेंगे   
चिर-निद्रा में सोकर भी तुम, नींद हमारी  भगा गईं,
खुद तो तुम परलोक सिधारी, पर भारत को जगा गईं ।।

न्याय दिलाने में तुमको अब, जो भी रोड़ा आयेगा,
हम सबके पैरों की ठोकर से, अब नहीं बच पायेगा
संसद हो या न्यायपालिका, यही संदेशा जायेगा
शील हरण का हर अपराधी, दंड कड़ा ही  पायेगा
बूढे़, बच्चे, नौजवान क्या, सारी दिल्ली हिला गईं,
खुद तो तुम परलोक सिधारी, पर भारत को जगा गईं ।।

मात-पिता भी घर-घर में अब, पुत्र को पाठ पढ़ायेंगे,
भूल गये वे अपनी संस्कृति, फिर से याद दिलायेंगे
वीर शिवाजी-गोहरबानो,  का किस्सा बतलायेंगे, 
चरित्र खोया सब कुछ खोया, ये उनको समझाएंगे
सिंगापुर में त्याग  प्राण, दिल्ली जलने  से बचा गईं,
खुद तो तुम परलोक सिधारीं, पर भारत को जगा गईं ।।

नमन  तुम्हारी बहादुरी को, तुम्हें  नहीं भूलेंगे हम,
दिल में जलती "ज्योति" रहेगी, आंखें याद में होंगी नम  
मात-पिता को मिले तुम्हारे, सहने की शक्ति ये गम,
उनके घावों पर मरहम को, स्वतः बढ़ें आगे सब हम
ये  घटना हम सबको बेटी, अंदर तक है हिला गई,
खुद तो तुम परलोक सिधारीं, पर भारत को जगा गई  ।।


 - के0पी0 सिंह ‘‘फकीरा‘‘
     विशेष न्यायाधीश निवास
   शाजापुर (म0प्र0)

1 comment:

Anonymous said...

Bahut hi sunder aur samyik kavita hai

Rakesh narayan