15 January 2013

जायसी


मलिक मोहम्मद जायसी ( जन्म १४७५ ई० के आस पास) के पाँच दोहे यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं। जायसी प्रारम्भिक दोहाकारों में आते हैं इसलिये इनके दोहों में कहीं कहीं मात्रा दोष हो सकता है। जायसी ने अवधी भाषा में साहित्य रचना की है।


अस अमराउ सघन घन, बरनि न पारौं अंत ।
फूलै फरै छवौ ऋतु , जानहु सदा बसंत ॥

(पद्मावत से)



जस तन तस यह धरती, जस मन तैस अकास ।
परमहंस तेहि मानस, जैसि फूल महँ बास ॥

दूध माँझ जस घीउ है, समुद माँह जस मोति ।
नैन मींजि जो देखहु, चमकि ऊठै तस जोति ॥



आपुहि खोए पिउ मिलै, पिउ खोए सब जाइ ।
देखहु बूझि बिचार मन, लेहु न हेरि हेराइ ॥



पानी महँ जस बुल्ला, तस यह जग उतिराइ ।
एकहि आबत देखिए, एक है जगत बिलाइ ॥

( अखरावट से)

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