सो गई है मनुजता की संवेदना
गीत के रूप में भैरवी गाइए।
कोई भी तो नहीं दूध का है धुला, है प्रदूषित समूचा ही पर्यावरण
कोई नंगा खड़ा वक्त की हाट में, कोई ओढ़े हुए झूठ का आवरण
सभ्यता के नगर का है दस्तूर ये
इनमें ढल जाइए, या चले जाइए।
डा० जगदीश व्योम
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