श्री के.पी.सिंह उच्च न्यायिक सेवा के अन्तर्गत अपर जिला न्यायाधीश के पद पर कार्यरत हैं। वे " के.पी. सिंह फकीरा" के नाम से कविता लिखते हैं। इस समय ग्वालियर में हैं। दोहे लिखने और उनके सस्वर पाठ करने में उन्हें महारत हासिल है। उनके ब्लाग से उनकी "बरखा बहार" शीर्षक कविता यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
बरखा बहार
सुन-सुनकर बूँदों की रिमझिम, लगा बजे वीणा के तार
ओढ़ चुनरिया गर्मी भागी, ठण्डी-ठण्डी बहे बयार
काले-काले मेघ लगें यों, नभ में नाच रहे गजराज
कौंध-कौंध कर बिजली मानो, तम पर ही कर रही प्रहार ।
ओढ़ चुनरिया ........................ ।।
मीठे बोल पपीहा बोले, मोर नाचते पंख पसार
रात में मेंढक राग अलापें, बजे झींगुरों की झंकार
सरिता भाग चली मिलने को, अपने प्रियतम सागर से
जहाँ भी देखो वहीं दिखे है, सारे जहाँ में प्यार ही प्यार।
ओढ़ चुनरिया ........................ ।।
हरियाली की चादर फैली, नाच उठे सब वन-उपवन
पेड़ों पर पड़ गये हैं झूले, गोरी गायें राग मल्हार
बम-बम भोले का जयकारा, गूंज उठा शिव-मंदिर में
बेल-पत्र और पुष्प चढ़ाने, भक्तों की है लगी कतार ।
ओढ़ चुनरिया ........................ ।।
जान पड़ गई है खेतों में, दमक उठा पीला सोना
भूमि-पुत्र का चेहरा देखो, आया है उस पर निखार
मधुर राग सुनकर रिमझिम का, गाये ये मतवाला मन
सभी की नजरें तुम्हें निहारें, स्वागत है बरखा बहार ।
ओढ़ चुनरिया ........................ ।।
-के.पी.सिंह "फकीरा"
के.पी. सिंह "फकीरा" जी की अन्य कविताएँ आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
7 comments:
" काले-काले मेघ लगें यों, नभ में नाच रहे गजराज
कौंध-कौंध कर बिजली मानो, तम पर ही कर रही प्रहार ......"
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं इस कविता की। रचनाकार को ढेर सारी हार्दिक बधाई।
-रत्न शंकर प्रसाद
वर्षा को तरस रहे उत्तर भारतीयों के लिए यह कविता राहत दे रही है। सुन्दर भाव हैं और सरल भाषा व सादगी इस कविता की अपनी विशेषता है। जज साहब से हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी उनकी कविताएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी। हिन्दी विकीपीडिया पर भी आपका कुछ योगदान मिल सके तो बहुत अच्छा रहेगा। आपके दोहों की भी प्रतीक्षा रहेगी।
-अनाम
सीधे सरल शब्दों में वर्षा वर्णन पढ कर मन प्रसन्न हो गया ।
मौसम के अनुकूल कविता नें आनन्द से तर ब तर कर दिया ।
Padhakar Bahut Achhaa Laga.
Padhakar Achhaa Laga.
आपकी कविता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। इस कविता में तो बरसात का बहुत सजीव चित्रण है परन्तु आजकल पानी नहीं वर्ष रहा है इसलिए यह कविता वर्षा की और अधिक याद दिलाती है।
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