श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण के जन्म की सूचना सुनकर एक गोपी भाव विभोर हो जाती है। गोपी के माध्यम से सूरदास ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में इसका चित्रण किया है। इस पद में बाल कृष्ण के अद्भुत सौन्दर्य का चित्रण हुआ है और उसे ब्रज की गली-गली में बहने वाली सौन्दर्य की नदी का रूपक दिया गया है। प्रस्तुत है सूरदास का यही
पद-
सोभा-सिन्धु न अंत रही री ।
नंद-भवन भरि पूरि उमँग चलि, ब्रज की बीथिनि फिरति बही री।।
देखी जाइ आजु गोकुल मैं, घर-घर बेंचति फिरति दही री ।
कहँ लगि कहौं बनाइ बहुत बिधि, कहत न मुख सहसहुँ निबही री ।।
जसुमति-उदर-अगाध-उदधि तैं, उपजी ऍसी सबनि कही री ।
सूरस्याम प्रभु इन्द्र-नीलमनि, ब्रज-बनिता उर लाइ गही री ।।
-सूरदास
सोभा-सिन्धु न अंत रही री ।
नंद-भवन भरि पूरि उमँग चलि, ब्रज की बीथिनि फिरति बही री।।
देखी जाइ आजु गोकुल मैं, घर-घर बेंचति फिरति दही री ।
कहँ लगि कहौं बनाइ बहुत बिधि, कहत न मुख सहसहुँ निबही री ।।
जसुमति-उदर-अगाध-उदधि तैं, उपजी ऍसी सबनि कही री ।
सूरस्याम प्रभु इन्द्र-नीलमनि, ब्रज-बनिता उर लाइ गही री ।।
-सूरदास
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