सुदामा पाण्डेय धूमिल की दो कविताएँ
( आजादी के बाद कवि धूमिल की पीड़ा )
-१-
अपने यहाँ संसद
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो वहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है ?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है ?
-सुदामा पाण्डेय धूमिल
-२-
बीस साल बाद
सुनसान गलियों से
चोरों की तरह गुजरते हुए
अपने आप से सबाल करता हूँ
क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है?
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है ?
-सुदामा पाण्डेय धूमिल
( आजादी के बाद कवि धूमिल की पीड़ा )
-१-
अपने यहाँ संसद
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो वहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है ?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है ?
-सुदामा पाण्डेय धूमिल
-२-
बीस साल बाद
सुनसान गलियों से
चोरों की तरह गुजरते हुए
अपने आप से सबाल करता हूँ
क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है?
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है ?
-सुदामा पाण्डेय धूमिल
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