03 May 2005

दोहे

  • दोहे

पर निन्दा धीमा ज़हर‚ धीरे–धीरे छाय।
निन्दक को जब ज्ञात हो‚ देर बड़ी हो जाय।।
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कृपा करी प्रभु सूर पर‚ तुलसी किये सनाथ।
मेरी सुधि कब लेउगे‚ ओ मेरे रघुनाथ।।
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लाख बुराई हो भरी‚ तजने की लो ठान।
शरणागत जो हो गया‚ उसे गहें भगवान।।

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फिकर फेक दे कूप में‚ होना हो जो होय।
करता जो करतार है‚ ठीक हमेशा होय।।

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झूठी पत्तल उठा लें, मधुसूदन भगवान।
वन्दे इससे सीख ले, तज दे गर्व गुमान।।

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नेकी करकरे भूल जा, कर न दान अभिमान।
किये नाम की चाह में, व्यर्थ इन्हें फिर जान।।

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आँख कान देखी सुनी, सब सच्ची ना होय।
पर अन्तर्मन जो कहे, सच बतलावे तोय।।

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मात पिता हैं ईश सम, और मिलेंगे नायं।
उनकी सेवा जो करे, भवसागर तर जाय।।


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-के. पी. सिंह फकीरा
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश
सोनकच्छ (देवास)
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