16 October 2018

तुमको तो मेरी याद न आएगी

तुमको तो मेरी याद न आएगी
आएगी भी तो नहीं रुलाएगी
पर कभी रुला ही दे तो यह करना
सामने किसी दर्पण के बैठ जरा
पहले मुसकाना, फिर शरमा जाना

वैसे तो प्रिय तुम इतनी सुन्दर हो
रोओगी भी तो फूल खिलाओगी
चन्दा को अलकों में भरमाओगी
बादल को पलकों में तरसाओगी

तरसाना- भरमाना पर ठीक नहीं
बिजलियाँ कौँध उठती हैं कभी कहीं
माने ही किन्तु न मन तो यह करना
उगते चन्दा से आँखें उलझाकर
पहले मुसकाना फिर शरमा जाना

चन्दा से आँख मिलाना बुरा नहीं
हर तारे से पर प्यार न अच्छा है
जूड़े की शोभा एक फूल से है
उपवन भर से अभिसार न अच्छा है

इसलिए कि जो सबसे टकराता है
वह नहीं किसी का भी हो पाता है
पर फिर भी मन न करे तो यह करना
जा किसी दुखी पतझर के दरवाजे
दो आँसू दे आना, दो ले आना

सुन्दरी, रूप चाहे जिसका भी हो
यौवन के दर पर एक भिखारी है
तुम चाहे जितना गर्व करो उस पर
रुकनेवाली उसकी न सवारी है

जो अपना नहीं, गर्व उस पर कैसा
जीवन तो है कागज के घर जैसा
पर फिर भी मान करो तो यह करना
कोई मुरझाया फूल मसल करके
पहले कुछ सुख पाना, फिर पछताना

तुम चहल-पहल ब्याहुली अटारी की
मैं सूनापन विधवा के आँगन का
है प्यार मिला तुमको मधुमासों का
मुझ पर साया है रोते सावन का

मिलना तो अब अपना नामुमकिन है
कारण, ढलने को जीवन का दिन है
पर फिर भी मिल जाएँ तो यह करना
अपने सपनों के मरघट में बैठा
मैं सिसकूँ तो तुम कफन उढा जाना

-गोपाल दास नीरज

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