एक चटाई पर सोता है, हर मौसम में छोटेलाल
पागल है, सपने बोता है, हर मौसम में छोटेलाल
कैसा है किरदार देह का, कोई नहीं समझ पाया
जो कुछ होना है होता है, हर मौसम में छोटेलाल
दीवारों के कान नहीं होते हैं वरना सुन लेते
क्यों हँसता है क्यों रोता है, हर मौसम में छोटेलाल
जो वारिस हैं वो सेवा के संकल्पों को भूल गये
लावारिस लाशें ढोता है, हर मौसम में छोटेलाल
सरकारी दस्तावेजों में तो आजाद लिखा है वो
लेकिन पिंजरे का तोता है, हर मौसम में छोटेलाल
श्वासों के पनघट पर प्रतिदिन आशाओं के साबुन से
दाग जिन्दगी के धोता है, हर मौसम में छोटेलाल
रमता जोगी बहता पानी, यही कहानी 'अज्ञानी '
कुछ पाता है कुछ खोता है, हर मौसम में छोटेलाल
-डा० अशोक अज्ञानी
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