खर्च दिया, मजदूर बन, श्रम कर तोड़े हाड़।
अफसर बेटे को हुए, वे माँ-बाप कबाड़।।
"टैडी" ड्राइंग-रूम में, सोफे पर आसीन।
पड़े खरहरी खाट पर, डैडी वृद्ध मलीन।।
स्वार्थ, धूर्तता, छल-कपट, झूठ गिरगिटी रंग।
मानव का व्यवहार अब, हुआ बहुत बदरंग।।
नेता अभिनेता बने, लोकतंत्र अलमस्त।
भ्रष्ट सकल सेवा-व्रती, जन-जीवन संत्रस्त।।
-डा० अनिल गहलोत
[डा० अनिल गहलोत के वाट्सप समूह से साभार]
No comments:
Post a Comment