05 August 2015

मेरे रहते

[ सुप्रसिद्ध कहानीकार सन्तोष श्रीवास्तव के सुपुत्र हेमन्त की पुण्यतिथि पर प्रस्तुत है उन्ही की एक कविता]-


ऐसा कुछ भी नही होगा मेरे बाद
जो न था मेरे रहते
वही भोर के धुँधलके में लगेंगी डुबकियाँ
दोहराये जायेंगे मंत्र श्लोक
वही ऐन सिर पर धूप के चढ जाने पर
बुझे चेहरे और चमकते कपडों में
भागेंगे लोग दफ्तरों की ओर
वही द्वार पर चौक पूरे जायेंगे
और छौंकी जायेगी सौंधी दाल
वही काम से निपटकर
बतियाएँगी पडोसिनें सुख दुख की बातें
वही दफ्तर से लौटती थकी महिलाएँ
जूझेंगी एक रुपये के लिये सब्जी वाले से
वही शादी ब्याह,पढाई कर्ज
और बीमारी के तनाव से जूझेगा आम आदमी
सट्टा,शेयर,दलाली,हेरा फेरी में डूबा रहेगा
खास आदमी
गुनगुनाएँगी किशोरियाँ प्रेम के गीत
वेलेंटाइन डे पर गुलाबों के साथ प्रेम का प्रस्ताव लिये
ढूँढेंगे किशोर मन का मीत
सब कुछ वैसे ही होगा....जैसा अभी है मेरे रहते
हाँ,तब ये अजूबा ज़रूर होगा
कि मेरी तस्वीर पर होगी चन्दन की माला
और सामने अगरबत्ती
जो नहीं जलीं
मेरे रहते

-हेमन्त
(सन्तोष श्रीवास्तव की फेसबुक बाल से साभार)

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