07 July 2012

मछली बोली


मछली बोली

सुन मछुए
मत फेंक रुपहला जाल

मैं पानी के हाथ बिकानी
पानी मेरी लाज कहानी
मुझे न कर निर्वसना
इन लहरों से नहीं निकाल

अंकशायिनी हूँ अथाह की
प्राण-प्रिया निर्मल प्रवाह की
मत छू मेरी देह
मुझे इस रेती पर मत डाल


मैं जो तेरे घर जाऊँगी
रस्ते ही मे मर जाऊँगी
मेरी सागर-प्रीत
मुझे गागर में नहीं उछाल

मछली बोली
सुन मछुए
मत फेंक रुपहला जाल।

-डा० रवीन्द्र भ्रमर

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