मछली बोली
सुन मछुए
मैं पानी के हाथ बिकानी
पानी मेरी लाज कहानी
मुझे न कर निर्वसना
इन लहरों से नहीं निकाल
अंकशायिनी हूँ अथाह की
प्राण-प्रिया निर्मल प्रवाह की
मत छू मेरी देह
मुझे इस रेती पर मत डाल
मैं जो तेरे घर जाऊँगी
रस्ते ही मे मर जाऊँगी
मेरी सागर-प्रीत
मुझे गागर में नहीं उछाल
मछली बोली
सुन मछुए
मत फेंक रुपहला जाल।
-डा० रवीन्द्र भ्रमर
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