13 October 2011

गाएँ जन गण मन

-सुभाष यादव भारती
बैर भाव सब भूल भालकर

गाएँ जन गण मन ।


कोई नहीं देश से बढ़ कर
इस जीवन में प्यारे
जाति भेद से उपर उठकर
देश क़ॆ ग़ुण तू गा रे
एक इशारे पर न्यौछावर
कर दें तन मन धन ।


अहित करे जो भी स्वदेश का
सूली उसे चढ़ा दें
ऐसे गद्दारों की गर्दन में
अब छुरा अडा दें
दें पूरा सम्मान देश को
कर दें सब अर्पन ।

अगर देश है, तो ही हम हैं
सबको यही बता दें
जन जन के अन्तर्मन में
कुछ ऐसा भाव जगा दें
विष उगलें जो देश द्रोह का
कुचलें उसका फन ।


No comments: