-सुभाष यादव भारती
बैर भाव सब भूल भालकर गाएँ जन गण मन ।
कोई नहीं देश से बढ़ कर
इस जीवन में प्यारे
जाति भेद से उपर उठकर
देश क़ॆ ग़ुण तू गा रे
एक इशारे पर न्यौछावर
कर दें तन मन धन ।
अहित करे जो भी स्वदेश का
सूली उसे चढ़ा दें
ऐसे गद्दारों की गर्दन में
अब छुरा अडा दें
दें पूरा सम्मान देश को
कर दें सब अर्पन ।
अगर देश है, तो ही हम हैं
सबको यही बता दें
जन जन के अन्तर्मन में
कुछ ऐसा भाव जगा दें
विष उगलें जो देश द्रोह का
कुचलें उसका फन ।
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