24 April 2011

देवीप्रसाद गौड़ की कविताएँ

मथुरा के श्री देवीप्रसाद गौड़ अपनी कविताओं के केन्द्र में हास्य मिश्रित व्यंग्य रखते हैं । श्री गौड़ के व्यंग्य प्रायः पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा परिवार के निकट संबंधों में व्याप्त त्रासदपूर्ण विसंगतियों की नग्न सच्चाई को उजागर करते हैं।
यहाँ श्री गौड़ की कुछ व्यंग्य कविताएँ प्रस्तुत हैं -


-1-

पत्नी ने कहा,
गर्मी की छुट्टियों में,
कहीं घूमने चलेंगे,
पति ने कहा,
''माँ`` को भी साथ ले चलेंगे
पत्नी ने बेलन उठाया
पति मुस्कराया
मैं तो मजाक कर रहा था
अपनी नहीं तुम्हारी ''माँ`` की
बात कर रह था ।



-2-

एक दिन बच्चों ने, माँ से पूछा
रूखे मन को कुछ
इस तरह सींचा,
माम, यह आपकी
कैसी नादानी है,
भला दादा, दादी से
तुम्हें क्या परेशानी है,
तुम अभी बच्चे हो,
समझ के कच्चे हो,
उनका तो, वही
फटा पुराना हाल है,
बेटा यह हमारे 'स्टेटस` का सवाल है।




-3-


बीमार बाप के,
आने की खबर सुनकर,
आंगन में ज्वालामुखी फट गया,
सारे घर का दम घुट गया,
उम्र भर भैया ने कमाई खाई है,
मरते समय बाप को हमारी याद आई है,
हमारे हिस्से में मलमूत्र,
उनके हिस्से में माल,
यह कोई अनाथालय है या अस्पताल,
यह तो हमारा घर है,
यहाँ इज्जतदार लोग रहते हैं,
कॉलोनी में लोग
हमें बड़ा आदमी कहते हैं।



-4-

सम्पत्ति के बँटवारे के बाद,
भाईयों की जान से
एक मुसीबत रह गई थी,
पता नहीं यह माँ अब तक
कैसे जीवित रह गई थी,
अब यह भी किस्सा खत्म हो गया है,
माँ का महीनों में हिस्सा हो गया है,
माँ कल पहली तारीख है,
बँटवारे का ध्यान दिलाते हुए,
बेटे ने कहा माँ ने इस तीर को
बड़ी सहजता से सहा,
बेटा मैं समझ गई,
अब कुछ कहने की जरूरत नहीं,
मुझे अपना डेरा उठाना है,
कल से छोटे के घर झाडू लगाना है।





-5-

बाप के घर में घुसते ही बेटे ने पूछा,
पिताजी पेंशन मिली,
बेटा पेंशन नहीं मिलती
तो मैं अब तक कैसे जीता
जिंदगी को कड़वे घूँट की तरह कैसे पीता,
मेरी दमा की बीमारी का हल
किसी भी बेटे को नहीं सूझता है।
बाबूजी पेंशन मिली,
हर कोई एक ही बात पूछता है
पेंशन में जरा सी देर होने पर
रसोई में मसालदानी रो जाती है,
नाती की किताब खो जाती है
अब तो पेंशन भी मेरी जान को
बबाल बनकर रह गई है
सिर्फ बाप बेटे के रिश्ते का
एक सवाल बनकर रह गई है।

-देबीप्रसाद गौड़


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