18 June 2007

सुरेश श्रीवास्तव"सौरभ" की दो कविताएँ







सुरेश श्रीवास्तव "सौरभ"

जन्म- 13 मार्च 1968
शिक्षा- एम. ए. हिन्दी साहित्य
सम्प्रति- अभिकर्ता भारतीय जीवन बीमा निगम
पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन तथा आकावाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण़ ।
मंचों पर काव्य पाठ।




सम्पर्क सूत्र—

सिविल लाइन
नई कालोनी, पन्ना (म.प्र.)488001
मोबा.9425166562

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हवा


जहरीली हवा
बहने लगी
आदमी बौने हो गए
पेड़ मचलना
बिसर गए
फूल की उदासी देख
तितली हैरान है
उधर
नागफनी जवान है !
—सुरेश श्रीवास्तव "सौरभ"




छन्द


विश्व बंधुत्व का करो तो आज शंखनाद
नाश करो हर भेद–भाव के विसाद को
राम का ये देश है औ संस्कार राम के हैं
आगे ब़ढ़ गले से लगाइए निषाद को
जाति धर्म वर्ग में समाज खण्ड खण्ड हुआ
पोस रहे रोज नए वाद को विवाद को
भारती की भावना का गान रखने के लिए
जड़ से मिटाइये जहाँ से उग्रवाद को !
-सुरेश श्रीवास्तव "सौरभ"

1 comment:

Anonymous said...

dear Mr. sourabh
i hav gone through ur poems
first poem is composed in freevrse.
freeverse require exclosen of meaning(arth ka visphot) i con`nt find in it ,but ghankshari chand is well composed.
congratulations


SOM THAKUR