शिवसिंह पतंग आधुनिक हिन्दी कविता के वरिष्ठ कवि हैं। "चाँदनी के अंधकार में" तथा "अपनी आस पर केवल" आपके प्रकाशित काव्य संग्रह है तथा "एक थी अतरी" और "धागी खम्मा अन्नदाता" आपके उपन्यास हैं ।
यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी बहुचर्चित कविता -
"लड़की"
लड़की के सिर पर है हरी घास का भारा
लड़की हरी घास का भारा नहीं है
अपनी जरूरतों के लिए हरे घास का भारा
बिकने आता है बाजार में
लड़की बाजार में नहीं आती
खरीददार आता है अपने जानवर के वास्ते
पूछता है— पन्द्रह–सोलह पूले तो होंगे
तो चलो, सुनकर चल पड़ता है
हरे घास का भारा
लड़की नहीं चलती
तब जानवर के सामने पूले–पूले
तिनकों तिनकों में बिखर जाता है
हरे घास का भारा
लड़की कहीं नहीं दिखती
होता नहीं मोल भाव
क्योंकि हरे घास का भारा
अब हरा नहीं है।
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शिवसिंह पतंग
संपर्क-
किला कोतवाली
राजगढ़ ब्यावरा म०प्र०
Mob- 7372254742
1 comment:
patang ji's kavita is very meaningfull and very close to heart..and face off the reality
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