26 April 2007

बी.एल.गौड़ की दो कविताएँ




बी.एल.गौड़
प्रधान सम्पादक
गौडसन्स टाइम्स (मासिक पत्र)

सम्पर्क- आर 8/23 राजनगर
गाजियाबाद

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ऐ हिमखण्ड गलो मत ऐसे







ऐ हिमखण्ड गलो मत ऐसे
जैसे मेरी उमर गली
मैंने तो सब कुछ ही खोया,
तुमको फिर भी नदी मिली।

मुझ में तुममें अन्तर केवल
मैं भी कोमल तुम भी कोमल
मैं भी था बस तब तक भावुक
जब तक लगे न मन पर चाबुक
फिर, अपनों के दंश मिले
शत्रु बनकर मित्र मिले
तुम पाकर ताप लगे बहने
मैं पाकर दर्द लगा लिखने
मैं रोया तो क्या पाया?
तुम रोये तो राह मिली।
ऐ हिमखण्ड गलो मत ऐसे ..........।

आओ हम तुम मित्र बनें
कुछ पीड़ा मैं तुमको दूँ
कुछ सपने मैं तुमसे लूँ
फिर दोनों हमराज़ बनें
दु:ख, कहने से बँट जाता है
सुख, कहने से घट जाता है
कितना भी हो कठिन सफ़र
बातों में कट जाता है
बातों से हटकर देखोगे
पाओगे यह उमर ढली।
ऐ हिमखण्ड गलो मत ऐसे
जैसे मेरी उमर गली
मैंने तो सब कुछ ही खोया,
तुमको फिर भी नदी मिली।

-बी.एल.गौड़
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आकुल धुन







जाने कब से पनप रही है ख़ामोशी की आकुल धुन
पीड़ा साफ झलकती है यदि मन में लगा हुआ हो घुन ।

याद किसी की आती है तो मन की पीर सताती है
जब बिछुड़ा कोई मिलता क्यों आँख अश्रु बरसाती है
आँगन मेह बरसता है जब मौसम रंग बदलता है
दूर कहीं से आती है तब जंगल बीच समाई धुन ।
जाने कब से पनप रही है ख़ामोशी की आकुल धुन।।


नीलगगन में उड़ते बादल अद्भूत चित्र बनाते हैं
द्वार-ओट से झाँक रहे कजरारे नयन बुलाते हैं
दो शिखरों के बीच कहीं सूरज के रंग बिखरते हैं
परिचित सी आवाज़ बुलाती, ओ ! नाराज़ बटोही सुन।
जाने कब से पनप रही है ख़ामोशी की आकुल धुन।।


कभी-कभी कोई बेचैनी आकर मुझे बुलाती है
छुपकर बैठी याद किसी की चपला-सी चौंकाती है
लाख जतन करने पर भी जब रूठी नींद नहीं आती
तो आकर थपकी दे जाती किसी गीत की बिसुरी धुन।
जाने कब से पनप रही है ख़ामोशी की आकुल धुन।।
-बी.एल.गौड़****

1 comment:

Anonymous said...

Aapki kavitayen padh ker accha laga. Mujhe lagta hai ki aapki kavitayen kahin aur bhi padhi hain. internet per aage bhi kavitayen dete rahiye. hindi sahitya ko aap jaise logon se bahut ummed hai.
L.S.sukhiya, U.K.