15 October 2006

हिन्दी चर्चा वाया यू.एस.ए. (भाग - 2)

.अब शुरू हुआ साहित्यिक यात्रा का दौर। होशंगाबाद के शास्त्री नित्यगोपाल कटारे जी से मैंने साहित्यिक यात्रा के सहभागी बनने हेतु अनुरोध किया और वे अपने सभी महत्वपूर्ण कार्य छोड़-छाड़ कर चलने को तैयार हो गए। 15 सितम्बर को गोंडवाना एक्सप्रेस से आरक्षण करावाया और चल दिए गंतव्य स्थान की ओर। अनेक मित्रों ने हमें वधाई दी मानो हम किसी बहुत बड़े अभियान पर जा रहे हों। भाई महेश मूलचंदानी तो रेलवे स्टेशन पर तब तक हमारे साथ रहे जब तक रेलगाड़ी चल नहीं दी। 16 सित. को प्रात: 6 बजे हम आगरा पहुँचे और वहाँ आटो रिक्शा लेकर मानस नगर स्थित सुप्रसिद्ध गजलकार अशोक रावत के आवास पर पहुँचे। कमलेश भट्ट कमल रात को ही गाजियाबाद से वहाँ आ गए थे। स्नानादि के बाद चाय नाश्ता किया और शिकोहाबाद के लिए चलने को तैयार हुए। आगरा से शिकोहाबाद जाने के लिए क्वालिस गाड़ी तैयार थी जिसकी व्यवस्था उ. प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से की गई थी। हम लोग गाड़ी में बैठकर हिन्दी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष और सुप्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर को लेने उनके अहीर पाड़ा स्थित आवास पर पहुँचे। सब लोग अब शिकोहाबाद की ओर चल दिए साथ में थे- सोम ठाकुर, कमलेश भट्ट कमल, अशोक रावत, प्रताप दीक्षित, डॉ० जगदीश व्योम, शास्त्री नित्यगोपाल कटारे, संजीव गौतम, ओमप्रकाश नदीम, नदीम। पूरे रास्ते साहित्यिक चर्चाएँ होती रहीं। विशेष रूप से सोम ठाकुर जी ने अनेक संस्मरण सुनाए। सोम जी खूब खुलकर बातें करते हैं और संस्मरण इतने रोचक तरीके से सुनाते हैं कि लगता है सुनते ही रहें। सोम ठाकुर के साथ यात्रा करने का अपना अलग ही अनुभव है। लगभग तीन घंटे में हम लोग शिकोहाबाद पहुँच गए रास्ता कब पूरा हो गया, पता ही नहीं चला। शिकोहाबाद पहुँचकर ज्ञानदीप विद्यालय की प्राचार्या डॉ० रजनी यादव कुंकुम और फूल मालाएँ लेकर हम लोगों की प्रतीक्षा कर रही थीं। सुप्रसिद्ध कवि और सांसद उदय प्रताप सिंह जी को भी समारोह में आना था परन्तु वे किसी कारणवश नहीं पहुँच पाये। मैंने महसूस किया कि वहाँ उदयप्रताप सिंह जी की कमी महसूस की जा रही थी।
हिन्दी गजल के शीर्षस्थ कवि दुष्यन्त कुमार पर समारोह केन्द्रित था। कार्यक्रम में हम लोगों के अतिरिक्त विनोद सोनकिया, नासिर अली, जमुनाप्रसाद उपाध्याय, भावना तिवारी वहाँ पहले से उपस्थित थे। कमलेश भट्ट कमल समारोह के मुख्य वक्ता थे। संयोजक थे अशोक रावत। कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। संचालक अशोक रावत ने दुष्यन्त कुमार का विस्तार से परिचय देते हुए उनकी गजलों पर भी प्रकाश डाला। सरस्वती वंदना शास्त्री नित्यगोपाल कटारे ने की और वक्ताओं ने दुष्यन्त कुमार जी की गजलों से उद्धरण देते हुए अपनी अपनी बात कही।
कटारे जी के संस्कृत लोकगीत खूब चर्चा में रहे। कमलेश भट्ट कमल की गजलें और सोम ठाकुर के गीतों की मांग होती रही पर समय कम पड़ गया। दुष्यन्त कुमार पर मेरे द्वारा बनाये गए ब्लाग की भी खूब चर्चा रही अनेक लोगों ने उसका पता लिखा और देखने के लिए उत्सुक दिखे। कमी यह महसूस हो रही थी कि यदि एक कम्प्यूटर और इंटरनेट की व्यवस्था होती तो हिन्दी में हो रहे तमाम महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्यों को आसानी से दिखाया जा सकता था। मंच पर बहुत ही सुन्दर कविताएँ सुनने को मिलीं। नई कवयित्री भावना तिवारी ने मधुर कंठ से एक प्रणयगीत पढ़ा ...... शेष कविताओं की चर्चा फिर किसी समय करूँगा। हम लोग वापस लौट चले आगरा के लिए।

[मंच पर बैठे हुए सर्व श्री डॉ॰ जगदीश व्योम, संजीव गौतम, प्रताप दीक्षित, विनोद सोनकिया, ओमप्रकाश नदीम, नासिर अली नदीम, सोम ठाकुर, कमलेशभट्ट कमल, भावना तिवारी, शास्त्री नित्यगोपाल कटारे, जमुनाप्रसाद उपाध्याय, अशोक रावत]

गाड़ी में बैठते ही फिर चर्चा शुरू हो गई ..... कभी पुरस्कारों को लेकर तो कभी कविता के गिरते हुए स्तर को लेकर कभी मंचों पर चुटुकलों और फूहड़पन से श्रोताओं का स्वाद खराब करने की बात सभी ने स्वीकारी। इण्टरनेट पर हिन्दी साहित्य के विषय में लम्बी चर्चा हुई और यह विचार भी किया गया कि कैसे ंअच्छा साहित्य नेट पर दिया जाए। प्रदेशों की हिन्दी समितियाँ, अकादमी, संस्थान, हिन्दी संस्थाएँ यदि अपने बड़े कवि सम्मेलनों (जिनमें तमाम फूहड़ कवियों को भी लोग झेलते हैं) के बजट में से मात्र 10 प्रतिशत भी खर्च कर दें तो इण्टरनेट पर हिन्दी का अच्छा खासा भण्डार स्थापित किया जा सकता है। जिससे हिन्दी भाषा और साहित्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गरिमा के साथ पहचान बना सकता है। विकीपीडिया से लेकर कविताकोश पर हिन्दी की स्थिति की चर्चा भी हुई। मैंने यह महसूस किया कि हिन्दी के बड़े से बड़े साहित्यकार और कवि इण्टरनेट पर हिन्दी की स्थिति के विषय में अधिक जानकारी अभी भी नहीं रखते हैं। लेकिन सभी का रुचि इस ओर है। और चाहते हैं कि उनकी रचनाएँ भी इण्टरनेट पर आयें।
बातों बातों में हजरतपुर आ गया और गाड़ी केन्द्रीय विद्यालय हजरतपुर की ओर मुड़ गई। रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु` के आवास पर चाय और समोसे हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे।
......(क्रमश: ....)

8 comments:

रवि रतलामी said...

आपकी साहित्य यात्रा तो वाकई मधुर और उत्साही रही.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आगे का इंतज़ार है।

Pratyaksha said...

रोचक विवरण ! इंतज़ार है आगे का

अनूप भार्गव said...

जान कर प्रसन्नता हुई कि आज भी दुश्यन्त जी पर केन्द्रित इस तरह के कार्यक्रम होते हैं । मेरी वास्तव में उस कार्यक्रम में आनें की काफ़ी इच्छा थी लेकिन समयाभाव के कारण सम्भव नहीं हो पाया।
सोम ठाकुर जी के किस्से सुननें का मुझे भी सौभाग्य मिला है , बहुत रोचक होते हैं ।
कवि सम्मेलनों के बारे में आपनें ठीक कहा । इन्हें चुटकलेबाजी और फ़ूह्ड़ हास्य से बचाना एक चुनौती है । उस में लगे धन और ऊर्जा का अच्छा प्रयोग किय जा सकता है ।
अगली कड़ी का इन्तज़ार रहेगा । अब तो आप गुड़गाँव पहुँचनें ही वाले हैं :-)

डॅा. व्योम said...

रवि जी, प्रत्यक्षा जी, मानोशी जी और अनूप जी ! धन्यवाद पढ़ने लिए और प्रतिक्रिया के लिए....... काम्बोज जी के यहाँ चाय और समोसों के बाद अगला पड़ाव गुड़गाँव का ही है।
डॉ॰ व्योम

Dr.Bhawna Kunwar said...

व्योम जी आपकी यात्रा और काव्यचर्चा बहुत अच्छी लगी। देर से पढ़ पायी पर दिलो- दिमाग पर छायी रहेगी।
डॉ० भावना कुँअर

Vidyadhara said...

कृपया अंग्रेज़ी से हिन्दी शब्दों की जानकारी के लिए इस विकासशील वेबसाइट का भी मूल्यांकन करें - EngHindi.com (इंगहिन्दी.कॉम) । धन्यवाद।

Unknown said...

अभिभूत हूँ इस साहित्यिक-यात्रा को शब्दों के माध्यम से महसूस कर .वास्तव में एक यादगार समय बीता..सोम दादा का आशीष मिला..मुझे इस साहित्यिक अनुष्ठान का हिस्सा होने का अवसर माँ शारदे की अनुकम्पा से मिला ...आदरणीय अग्रज व्योम जी ने वरिष्ठ के बीच कनिष्ठ हस्ताक्षर को भी स्थान दिया ..आपका हार्दिक आभार ...!!