16 April 2005

होली के रंग लोकसाहित्य के संग

प्रकृति जब प्रसन्न होती है तब फूल खिलते हैं‚ भौंरे गूँजते हैं‚ खेत खलिहान‚ गली‚ मैदान सब जगह अपना मादक प्रभाव बिखेर देते हैं ॔॔॔॔॔ समूचा लोक रसमय होने लगता है। ऍसा लगता है कि प्रकृति स्वयं उल्लसित होकर लोक के मध्यम से गान कर रही है।
फागुन सब क्लेश हरत गुइयाँ
रस झर झर झरर झरत गुइयाँ.....

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