चोर चोर मौसेरे भाई
कुछ तेरे कुछ मेरे भाई
कोई मुक्त नहीं जीवन में
सबके अपने घेरे भाई
तू मेरी मत कहे‚ मै तेरी
दर्पण के घर डेरे भाई
सबके हाथ शकुनिया पासे
राम राम मुख टेरे भाई
शिखर बने बैठे सब ऍठे
नीव कहाँ तू हेरे भाई
‘विजय’ हार इनमें बैठे हैं
चौरासी के फेरे भाई
-डा० दयाकृष्ण विजयवर्गीय ‘विजय’
1 comment:
अच्छी रचना है भाई....
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निखिल आनंद गिरि
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