14 April 2005

चोर चोर मौसेरे भाई
कुछ तेरे कुछ मेरे भाई
कोई मुक्त नहीं जीवन में
सबके अपने घेरे भाई
तू मेरी मत कहे‚ मै तेरी
दर्पण के घर डेरे भाई
सबके हाथ शकुनिया पासे
राम राम मुख टेरे भाई
शिखर बने बैठे सब ऍठे
नीव कहाँ तू हेरे भाई
‘विजय’ हार इनमें बैठे हैं
चौरासी के फेरे भाई

-डा० दयाकृष्ण विजयवर्गीय विजय

1 comment:

Nikhil Anand Giri said...

अच्छी रचना है भाई....
यहाँ भी पधारें
www.hindyugm.com

निखिल आनंद गिरि