24 September 2017

ग़मों को सहते ही रहने की

ग़मों को सहते ही रहने की आदत छोड़ आया हूँ
जहाँ पर पाँव जलते थे, मैं वो छत छोड़ आया हूँ

ये चीज़ें भूल जाने की मेरी आदत का क्या कीजे
मैं तेरे दिल में अपने दिल की दौलत छोड़ आया हूँ

'बया' चिड़िया हूँ, औरों के ही मुझको घर बनाने हैं
मैं हर तिनके पे लिख-लिख कर 'मुहब्बत' छोड़ आया हूँ

तू खुद को आईने में देखकर, जब चाहे पढ़ लेना
तेरी आँखों में, जो भी प्यार के ख़त छोड़ आया हूँ

किसी को क्या पता, कितने दिलों के काग़ज़ों से मैं
फ़साना बनके लौटा हूँ, हक़ीक़त छोड़ आया हूँ

रहेगा बचपना जब तक, रहेगी ज़िन्दगी उनमें
बड़ों में नन्हे बच्चों-सी शरारत छोड़ आया हूँ

मुझे अब उम्र भर तदबीर से ही काम लेना है
न जाने कौन से हाथों में क़िस्मत छोड़ आया हूँ

पता भी है तुझ्रे दुनिया, कि तेरे इश्क़ की ख़ातिर
ख़ुदा ने मुझको बख़्शी थी, वो ज़न्नत छोड़ आया हूँ

'कुँअर' कुछ लोग रुसवा भी करेंगे, इतना तो तय है
मैं इस दुनिया की गलियों में जो शोहरत छोड़ आया हूँ

-कुँअर बेचैन

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