30 October 2016

तू ने भी क्या निगाह डाली री मंगले,

तू ने भी क्या निगाह डाली
री मंगले,
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
करधनियाँ पहन लीं मुँडेरों ने
आले ताबीज पहन आये
खड़े हैं कतार में बरामदे
सोने की कण्ठियाँ सजाये
मिट्टी ने आग उठाकर माथे
बिन्दिया सुहाग की बना ली
री मंगले,
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
सरसरा रहीं देहरी-द्वार पर
चकरी-फुलझड़ियों की पायलें
बच्चों ने छतों-छतों दाग दीं
उजले आनन्द की मिसाइलें
तानता बचपन हर तरफ़
नन्ही सी चटचटी दुनाली
री मंगले,
मावस है स्वर्ण-पंख वाली
द्वार-द्वार डाकि़ये गिरा गये
अक्षत-रोली-स्वस्तिक भावना
सारी नाराज़ियाँ शहरबदर,
फोन-फोन खनकी शुभ कामना
उत्तर से दक्छिन सोनल-सोनल
झिलमिल रामेश्वरम्-मनाली
री मंगले
मावस है स्वर्ण-पंख वाली

-रमेश यादव

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर रचना ।