17 June 2011

चिरैया ( नवगीत )

- पूर्णिमा वर्मन

फुरफुराती
दूब पर चुगती चिरैया

चहचहाती झुंड में
मिलती बिछड़ती
छोड़ती जाती
सरस आह्लाद के पलछिन
कलकलाते
कूप पर रुकती चिरैया


लहलहाते खेत पर
उड़ती पहुँचती
जोड़ती जाती
नवल निर्माण के कुछ तृण
घोंसले में
धूप से ढुकती चिरैया


एक पल डरती बिजूके से
पलटती
जाँचती रुककर
कहीं विश्वास के पदचिह्न
आँगने के
नेह में लुटती चिरैया

- पूर्णिमा वर्मन

2 comments:

डॅा. व्योम said...

फुरफुराती
चहचहाती
कलकलाते कूप
लहलहाते खेत

जैसे विशिष्ट शब्दों का प्रयोग इस नवगीत को एक विशेष पहचान दे रहा है।

deepa joshi said...

बहुत सुंदर