मन के झरोखे से झाँकती थी कविता
इस बार सावन में, मुझको सुनाएँगे
हम ने भी मन में, बना ली योजना
"बरखा बहार" नामक, कविता सुनाएँगे।
पर क्या पता था कि, रूठेंगे इन्द्रदेव
सावन में बूँदों की, रिमझिम न लाएँगे
"बरखा बहार" कैद, दिल में ही रह गई
अब जाने कब उसको, मुक्ति दिलवाएँगे।
बिन कविता कवि, कैसे कटेगा सावन
मंदिर में भोले को, पीड़ा बताएँगे
सागर का सरिता से, मिलन है जरूरी
गोरी को ब्रज की क्या, झूला झुलाएँगे।
आर्तनाद कविमन का, सुनाना पड़ेगा
कविता के अश्रु देख, मेघ सहम जाएँगे
नहीं तो कहेगा फिर, इनको कौन मेघदूत
कैसे कवि इन पर, कलम चलाएँगे।
विनती "फकीरा" की, सुनिए जी इन्द्रदेव
नहीं तो हम भी फिर, धूनी रमाएँगे
सुनकर पुकार मेरी, कान्हा जो आ गए
मुरली की धुन पर, मेघ बरसाएँगे।
हो गई जो किरकिरी, फिर कहते रहना
ब्रज के "फकीरा" से न, कभी टकराएँगे
विनती जो मुझ कवि की, सुन लोगे इन्द्रदेव
सभी भारतवासी तुम्हें, शीश झुकाएँगे।
-के. पी. सिंह "फकीरा"
इस बार सावन में, मुझको सुनाएँगे
हम ने भी मन में, बना ली योजना
"बरखा बहार" नामक, कविता सुनाएँगे।
पर क्या पता था कि, रूठेंगे इन्द्रदेव
सावन में बूँदों की, रिमझिम न लाएँगे
"बरखा बहार" कैद, दिल में ही रह गई
अब जाने कब उसको, मुक्ति दिलवाएँगे।
बिन कविता कवि, कैसे कटेगा सावन
मंदिर में भोले को, पीड़ा बताएँगे
सागर का सरिता से, मिलन है जरूरी
गोरी को ब्रज की क्या, झूला झुलाएँगे।
आर्तनाद कविमन का, सुनाना पड़ेगा
कविता के अश्रु देख, मेघ सहम जाएँगे
नहीं तो कहेगा फिर, इनको कौन मेघदूत
कैसे कवि इन पर, कलम चलाएँगे।
विनती "फकीरा" की, सुनिए जी इन्द्रदेव
नहीं तो हम भी फिर, धूनी रमाएँगे
सुनकर पुकार मेरी, कान्हा जो आ गए
मुरली की धुन पर, मेघ बरसाएँगे।
हो गई जो किरकिरी, फिर कहते रहना
ब्रज के "फकीरा" से न, कभी टकराएँगे
विनती जो मुझ कवि की, सुन लोगे इन्द्रदेव
सभी भारतवासी तुम्हें, शीश झुकाएँगे।
-के. पी. सिंह "फकीरा"
2 comments:
Man Ke Bhav Bahut Pasand Aaye.
aapaki kavita ati uttam lagi..
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