11 April 2007

शिव सिंह पतंग की कविताएँ











शिव सिंह पतंग

कस्तूरी और हिरन

आग की बात उसने मुझे
पानी से लिक्खी
लिक्खा कि
पानी से अँधेरे पर दस्तक दो तो
सब कुछ
रोशन रोशन हो जाता है
पढ़ते हुए मैंने कहा था
जहाँ आधी नदी एक तरफ
आधी दूसरी तरफ सिमटी थी
जिसके किनारे घास थी
हिरन
हिरन की नाभि में थी
कस्तूरी
कस्तूरी और हिरन ....
ऐसा क्यों होता है कस्तूरी हिरन
कि कौंधती है बिजली बादल में
और
हरियाली के
दरवाजे दरवाजे
अंकुराने लगते हैं
आम्र मौर
मंजरियाँ !

-शिव सिंह पतंग

संपर्क-
किला कोतवाली
राजगढ़ ब्यावरा म०प्र०

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