समय–शत्रु सिर पर चढ़ आया, लड़ बेटी
तेरी ताकत सिर्फ यही है, पढ़ बेटी !
कदम–कदम पर बिखरे काँटे ही काँटे
कुछ गैरों ने, कुछ अपनों ने हैं बाँटे
राह इन्हीं में तुझे बनानी है अपनी
पहन कवच शिक्षा का, आगे बढ़ बेटी!
तेरी ताकत सिर्फ यही है पढ़ बेटी!
समय–शत्रु सिर पर...
सड़ी–गली रूढ़ियाँ बदल दे जीवन की
मर्यादा में रहकर, कर अपने मन की
संकल्पों की समिधा भरकर मुट्ठी में
तू अपने प्रतिमान नवेले गढ़ बेटी !
तेरी ताकत सिर्फ यही है पढ़ बेटी!
समय–शत्रु सिर पर...
सेवा-भाव न अपना कम होने देना
और जु़ल्म को मत हावी होने देना
‘शिक्षा’ तेरा अस्त्र–शस्त्र है, सम्बल है
ले शिक्षा का दीप, सीढ़ियाँ चढ़ बेटी !
तेरी ताकत सिर्फ यही है पढ़ बेटी!
समय–शत्रु सिर पर...
तू तो दो परिवारों का उजियारा है
तेरी मुट्ठी में प्रकाश की धारा है
अंधकार के बियाबान हैं मंज़िल में
भूले से भी मत रहना अनपढ़ बेटी !
तेरी ताकत सिर्फ यही है पढ़ बेटी!
समय–शत्रु सिर पर चढ़ आया, लड़ बेटी
तेरी ताकत सिर्फ यही है, पढ़ बेटी !
–डॉ॰ सन्तोष व्यास
4 comments:
वाह।
sundar kavita
अद्भुत! जोश भरती कविता। साधुवाद
बेटियों पर बहुत सुंदर रचना । रेणु चन्द्रा
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