16 September 2022

ये पहाड़ी औरतें

ये पहाड़ी औरतें

ये पहाड़ी औरतें
भोर के उजास में
लगा कर विश्वास की
माथे पर बिंदिया,
पहन कर नथनी
नाक में अभिमान की,
लपेट कर पल्लू
कमर में जोश का,
चल पड़तीं काम पर
अपनी ही धुन में,
ये पहाड़ी औरतें

पीठ पर ढ़ोकर
जीवन का बोझ
पहाड़ी ढलानों पर
चढ़ते-उतरते
बुनती हैं ख्वाब
कभी साथी की
याद में हुलसतीं
कभी विरही गीत
गुनगुनाती जातीं,
ये पहाड़ी औरतें

रात चाँदनी में नहा
चाँद से बातें करतीं
कभी उल्हाने देतीं
कभी पूछतीं पता
परदेसी पिया का,
ये पहाड़ी औरतें

सखी सहेली-सी
आशाएँ साथ लिये
हँसी-ठिठोली करतीं
रात के सूने पहर में 
देख पाँवों के ज़ख्म
कराह उठती हैं
ये पहाड़ी औरतें।

-रेणु चन्द्रा माथुर 
केलिफोर्निया

8 comments:

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर रचना भाव अभिव्यक्त करने में सक्षम

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१९-०९ -२०२२ ) को 'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक -४५५६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

कविता रावत said...

पहाड़ी औरतों की पहाड़ से जैसे कष्ट, लेकिन वे पहाड़ सी अडिग होती है
बहुत अच्छी प्रस्तुति

मन की वीणा said...

पहाड़ी औरतों के जीवन पर प्रकाश डालती सुंदर रचना।

मन की वीणा said...

पहाड़ी औरतों के जीवन पर प्रकाश डालती सुंदर रचना।

Amrita Tanmay said...

सुन्दर चित्रण।

Swarajya karun said...

बेहतरीन कविता। दिलों को छू जाने वाली अभिव्यक्ति। हार्दिक आभार।

Anonymous said...

आप सभी को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ । रेणु चन्द्रा