पुरवा बयार जैसे कटार
सुरबाला सा सोहे सिंगार,
मुस्काओ न मुझको निहार
बदनाम व्यर्थ हो जाएंगे,
दोनों ही कहीं खो जाएंगे।
मेरा जीवन तृष्णा का घर
तुम हो तृप्ति लोक की रानी।
बिजली जैसे अंग दमकते,
रूपसि तुम हो एक कहानी ॥
मैं अन्धकार, मैं अंधकार,
करना न मुझे तुम तनिक प्यार,
कहता हूँ तुमसे बार-बार,
उपनाम व्यर्थ हो जाएंगे।
मैं नदिया का बहता पानी,
लक्ष्मण रेखा तेरा गहना।
नीरवता वासना न रच दे.
आग फूस में दूरी रखना ॥
मेरी आशाएं हैं अपार,
तू मादकता का मंदिर ज्वार,
संयम ने मानी अगर हार,
कोहराम व्यर्थ हो जाएंगे।
मन आराधक बना तुम्हारा,
हूर कोई हो या हो देवी।
ताजमहल की वंशज लगतीं,
बोल तुम्हारे अन्तर वेधी ॥
अब लो पुकार, दो सौंप भार,
हैं 'पवन' सदन के खुले द्वार,
यदि उतर गया यौवन ख़ुमार,
नीलाम व्यर्थ हो जाएंगे।
-पवन बाथम
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