हाथ से छूट सड़क पर गिरा
धूप का भेंटशुदा चश्माहमारे सम्बंधों की तरह
किरिच सब
बिन जीवन हो गये
सोन दिन आये क्या
लो गये
समय का खलनायक जीता
त्रासदी की फ़िल्में हो गईं
मुट्ठियों को ख़ालीपन थाम
पकेपन में स्याही बो गईं
न लौटे शकुनों के अनुमान
खोजने हरियाली जो गये
सोन दिन आये क्या
लो गये
काँच के परदे के इस पार
साँस की घुटन सजीवन हुई
दृष्टि में आलेखों को बाँध
अस्मिता काँपी छुईमुई
भरे मौसम तक पहुँचे हाथ
अचानक पिघल हवा हो गये
सोन दिन आये क्या
लो गये
-सुभाष वसिष्ठ
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