19 June 2018

भाती रही चाँदनी

जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
            मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी 
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
            खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी 
सुख में तो सभी मीत होते किन्तु दुख में भी
            मेरे साथ साथ गीत गाती रही चाँदनी 
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
            और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी 


-उदयप्रताप सिंह

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