कितने ज्यादा बदल गए हैं,
जब से हुए रिटायर पापा
भीतर-भीतर बिखर गए हैं,
सधे हुए हैं बाहर पापा
कड़कदार आवाज रही जो,
धीमी सी हो गयी अचानक
समझौतों की लाचारी अब,
जीवन का लिख रही कथानक
घर के न्यायाधीश कभी थे,
न्याय माँगते कातर पापा
बेटे-बहुएँ आँख परखते थे
लेकिन अब आँख दिखाते
चले पकड़ कर जो उँगली को,
वह उँगली पर आज नचाते
बच्चों की रफ्तार तेज है,
घिसे हुए से टायर पापा
माँ अब पहले से भी ज्यादा,
देखरेख पापा की करती
नहीं किसी से कभी डरी माँ,
लेकिन अब बच्चों से डरती
घर में रहकर भी लगते है,
जैसे हों यायावर पापा
पापा को आनन्दित करतीं,
नाती-पोतों की मुस्काने
मन मयूर भी लगे थिरकने,
मिल जाते जब मित्र पुराने
कहाँ गया परिवार, प्रेम, वह,
जिस पर रहे निछावर पापा
कितने ज्यादा बदल गए हैं,
जब से हुए रिटायर पापा
भीतर-भीतर बिखर गए है,
सधे हुए हैं बाहर पापा
-डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया
जब से हुए रिटायर पापा
भीतर-भीतर बिखर गए हैं,
सधे हुए हैं बाहर पापा
कड़कदार आवाज रही जो,
धीमी सी हो गयी अचानक
समझौतों की लाचारी अब,
जीवन का लिख रही कथानक
घर के न्यायाधीश कभी थे,
न्याय माँगते कातर पापा
बेटे-बहुएँ आँख परखते थे
लेकिन अब आँख दिखाते
चले पकड़ कर जो उँगली को,
वह उँगली पर आज नचाते
बच्चों की रफ्तार तेज है,
घिसे हुए से टायर पापा
माँ अब पहले से भी ज्यादा,
देखरेख पापा की करती
नहीं किसी से कभी डरी माँ,
लेकिन अब बच्चों से डरती
घर में रहकर भी लगते है,
जैसे हों यायावर पापा
पापा को आनन्दित करतीं,
नाती-पोतों की मुस्काने
मन मयूर भी लगे थिरकने,
मिल जाते जब मित्र पुराने
कहाँ गया परिवार, प्रेम, वह,
जिस पर रहे निछावर पापा
कितने ज्यादा बदल गए हैं,
जब से हुए रिटायर पापा
भीतर-भीतर बिखर गए है,
सधे हुए हैं बाहर पापा
-डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया
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