शिशिर ने पहन लिया बसन्त का दुकूल
गन्ध बह उड़ रहा पराग धूल झूले
काँटे का किरीट धारे बने देवदूत
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे ॠतुराज आ गया
-अज्ञेय
गन्ध बह उड़ रहा पराग धूल झूले
काँटे का किरीट धारे बने देवदूत
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे ॠतुराज आ गया
-अज्ञेय
1 comment:
अत्यन्त. ही रोचक रचना ह्रदय प्रसन्न चित्त हो उठा।
shabdmandir.blogspot.com
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