02 October 2018

आज सुबह

आज सुबह
सूरज ने पूछा
क्यों रखते हो बंद खिड़कियाँ

कमरे में कुछ देर
धूप को भी झरने दो
अन्दर की चीजों को भी
साँसें भरने दो
बड़े अज़ब हो
दिन में भी
कमरे में रखते जली बत्तियाँ

मुर्दा हुई मेज
जिस पर तुम बैठे रहते
देखो बाहर
सुनो कि पत्ते क्या-क्या कहते
क्यों नाहक ही
बना रहे तुम
अंधे युग की नई बस्तियाँ

होती रहतीं
रोज़ नई घटनाएँ बाहर
तितली-तोते-मोर मनाते
उत्सव जी-भर
छिपा रहे तुम
हम सबसे क्या
जो करते हो रोज़ गलतियाँ

-कुमार रवीन्द्र

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