आप ग़ज़ल कहते हैं इसको, पर ये आग हमारी है
इसको हर पल ज़िन्दा रखने की अपनी लाचारी है.
आईना हूँ, अंधापन हरगिज़ मुझको मंज़ूर नहीं
जैसे को तैसा कहने की अपनी ज़िम्मेदारी है.
खुद्दारी थी अपने आगे करते भी तो क्या करते
गुमनामी से लड़कर आखिर हमने उम्र गुज़ारी है .
पहले दुनिया को बाँचेंगे फिर लिखने की सोचेंगे
हम उनसे हैं दूर जिन्हें बस लिखने की बीमारी है .
पत्थर हैं हम तुम दोनों ही , हम पथ में तुम मंदिर में
क्या तक़दीर तुम्हारी भाई क्या तक़दीर हमारी है !
महफ़िल में तुम ही हरदम बैठे हो आगे की सफ़ में
काश! कभी हमसे भी कहते- 'आज तुम्हारी बारी है'.
गिन गिन कर रक्खे हैं इसमें उसके दिन उसकी रातें
मत खोलो इसको ये उसकी यादों की अलमारी है .
-जय चक्रवर्ती
इसको हर पल ज़िन्दा रखने की अपनी लाचारी है.
आईना हूँ, अंधापन हरगिज़ मुझको मंज़ूर नहीं
जैसे को तैसा कहने की अपनी ज़िम्मेदारी है.
खुद्दारी थी अपने आगे करते भी तो क्या करते
गुमनामी से लड़कर आखिर हमने उम्र गुज़ारी है .
पहले दुनिया को बाँचेंगे फिर लिखने की सोचेंगे
हम उनसे हैं दूर जिन्हें बस लिखने की बीमारी है .
पत्थर हैं हम तुम दोनों ही , हम पथ में तुम मंदिर में
क्या तक़दीर तुम्हारी भाई क्या तक़दीर हमारी है !
महफ़िल में तुम ही हरदम बैठे हो आगे की सफ़ में
काश! कभी हमसे भी कहते- 'आज तुम्हारी बारी है'.
गिन गिन कर रक्खे हैं इसमें उसके दिन उसकी रातें
मत खोलो इसको ये उसकी यादों की अलमारी है .
-जय चक्रवर्ती
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