03 July 2017

माटी का पलंग मिला राख का बिछौना

माटी का पलंग मिला राख का बिछौना
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना

एक ही दुकान में सजे हैं सब खिलौने
खोटे–खरे, भले–बुरे, सांवरे सलोने
कुछ दिन तक दिखे सभी सुंदर चमकीले
उड़े रंग, तिरे अंग, हो गये घिनौने
जैसे–जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना

मौन को अधर मिले अधरों को वाणी
प्राणों को पीर मिली पीर की कहानी
मूठ बाँध आये चले ले खुली हथेली
पाँव को डगर मिली वह भी आनी जानी
मन को मिला है यायावर मृग–छौना

शोर भरी भोर मिली बावरी दुपहरी
साँझ थी सयानी किंतु गूंगी और बहरी
एक रात लाई बड़ी दूर का संदेशा
फैसला सुनाके ख़त्म हो गई कचहरी
ओढ़ने को मिला वही दूधिया उढ़ौना
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना


-आत्म प्रकाश शुक्ल


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